Tuesday , 18 February 2025

 नमाज़ में खांसना कैसा है?

सवाल:

अस्सलामु अलयकुम व रहमतुल्लाहि व बरकातुहु 

 नमाज़ में खांसना कैसा है?

जवाब: 

व अलयकुम अस्सलाम व रहमतुल्लाहि व बरकातुहु 

 नमाज़ में खांसना:

-मरीज़ की ज़बान से बे इख़्तियार आह ! ऊह निकला नमाज़ न टूटी यूं ही छींक, जमाही, खांसी, डकार वगैरा में जितने हुरूफ़ मजबूरन निकलते हैं मुआफ़ हैं।(दुर्रे मुख्तार जि. 1 स.416)

 -फूंकने में अगर आवाज़ न पैदा हो तो वोह सांस की मिस्ल है और नमाज़ फ़ासिद नहीं होती मगर कस्दन फूंकना मकरूह है और अगर दो हर्फ पैदा हों जैसे उफ़, तुफ़ तो नमाज़ फ़ासिद हो गई । (गुनयह स. 427)

 खन्कारने में जब दो हुरूफ़ ज़ाहिर हों जैसे “अख तो “मुफ्सिद है। हां अगर उज्र या सहीह मक्सद हो म-सलन तबीअत का तक़ाज़ा हो या आवाज़ साफ़ करने के लिये हो या इमाम को लुक्मा देना मक़्सूद हो या कोई आगे से गुज़र रहा हो उस को मु-तवज्जेह करना हो इन वुजूहात की बिना पर खांसने में कोई मुज़ा-यका नहीं।

(दुर्रे मुख्तार, रद्दु मुहतार जि.2 स.455)

 

 नमाज़ में खांसना कैसा है?

namaz me khansna kaisa hai

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