Thursday , 21 November 2024

ताजिए दारी पर उलमाए अहले सुन्नत का मोकिफ

सवाल:

अस्सलामु अलयकुम व रहमतुल्लाहि व बरकातुहु
ताजिए दारी पर उलमाए अहले सुन्नत का मोकिफ क्या है?

जवाब:

व अलैकुम अस्सलाम व रहमतुल्लाहि व बरकातुहु

कुछ लोग समझते हैं कि ताजिए दारी सुन्नियों का काम है और इससे रोकना मना करना वहाबियों का। हालांकि जब से यह गैर शरई ताजिए दारी राइज हुई है किसी भी ज़िम्मेदार सुन्नी आलिम ने उसे अच्छा नहीं कहा है।

हिन्दुस्तान में दौरे वहाबियत से पहले के आलिम व बुजुर्ग हज़रत शाह अब्दुल अज़ीज़ मुहद्दिस देहलवी रहमतुल्लाहि अलैहि लिखते हैं :

यानी अशर-ए-मुहर्रम में जो ताजिए दारी होती है गुंबद नुमा ताजिए और तस्वीरें बनाई जाती हैं यह सब नाजाइज़ है।

(फतावा अज़ीज़िया जिल्द अव्वल सफः 75)

आला हज़रत मौलाना अहमद रज़ा खाँ बरैलवी रहमतुल्लाहि तआला अलैहि जो इमाम अहले सुन्नत कहलाए जाते हैं जिनका फतवा अरब व अजम में माना जाता रहा है वह फरमाते हैं।

“अब के ताजिए दारी इस तरीका ना मुर्जिया का नाम है कतअन बिदअत व नाजाइज़ व हराम है।”

(फतावा रज़्वीया जिल्द 24 सफः 513 मत्बूआ रज़ा फाउन्डेशन लाहौर)

कुछ लोग कहते हैं कि ताजिया बनाना जाइज़ है घुमाना नाजाइज़ है आला हज़रत ने उसका भी रद्द फरमाया और बनाने से भी मना फरमाया वह लिखते हैं।

“मगर इस नक़ल में भी अहले बिदअत से एक मुशाबिहत और ताजिए दारी की तोहमत का खदशा और आइंदा अपनी औलाद व अहले एतकाद के लिए इब्तिलाए बिदअत का अन्देशा है। लिहाज़ा रौज़-ए-अक्दस हुजूर सैयदुश्शुहदा की ऐसी तस्वीर भी न बनाए। (फतावा रज़्वीया जिल्द 24, सफः 513, मत्बूआ रज़ा फाउन्डेशन लाहौर)

जो लोग कहते हैं कि ताजिया बनाना अहले सुन्नत का काम है वह आला हज़रत की किताबों का मुताला करें पचासों जगह उनकी किताबों में ताजिए दारी को नाजाइज़ व हराम और गुनाह लिखा है बल्कि पूरा एक रिसाला इसी बारे में तस्नीफ फरमाया है जिसका नाम है “अआली अल-इफादा फी ताजिया अल-हिन्द व बयान शहादते”।

मुफ्ती-ए-आज़म हिन्द मौलाना शाह मुस्तफा रज़ा ख़ाँ अलैहिर्रमा फरमाते हैं “ताजिए दारी शरअन नाजाइज़ है।” (फतावा मुस्तफ़्वीया सफः 534, मत्बूआ रजा अकेडमी मुम्बई) सदरुश्शरीआ हजरत मौलाना अमजद अली साहब आजमी अलैहिर्रहमा ताजिए दारी और उसके साथ जगह-जगह जो खिलाफे शरअ हरकात व बिदआत राइज हैं उनका जिक्र करके लिखते हैं “यह सब महज़ खुराफात हैं इन सबसे हज़रत सैयदना इमाम हुसैन रजि अल्लाहु तआला अन्हु खुश नहीं हैं।” चन्द सतर आगे लिखते हैं।

यह वाक्या तुम्हारे लिए नसीहत था और तुमने उसको खेल तमाशा बना लिया। (बहारे शरीअत हिस्सा 16, सफः 248) हज़रत मौलाना शाह मुफ्ती मुहम्मद अजमल साहब संभली फरमाते हैं।

अब चूंकि ताजिए दारी बहुत मम्नूआते शरईया और उमूर नाजाइज़ पर मुश्तमिल है लिहाजा ऐसी सही नकल भी नहीं बनानी चाहिए। (फतावा अज्मलीया जिल्द 4, सफः 15) हज़रत मौलाना हशमत अली खाँ बरैलवी फरमाते हैं।
ताजिए बनाना उन्हें बाजे ताशे के साथ धूम धाम से उठाना उनकी ज़्यारत करना उनका अदब और ताज़ीम करना उन्हें सलाम करना, उन्हें चूमना, उनके आगे झुकना और आंखों से लगाना, बच्चों को हरे कपड़े पहनाना घर-घर भीख मंगवाना करबला जाना वगैरह शरअन नाजाइज़ व गुना हैं।

(शम-ए-हिदायत हिस्सा सोम सफः 30)

फकीहे मिल्लत मुफ्ती जलालुद्दीन साहब अम्जदी फरमाते हैं। हिन्दुस्तान में जिस तरह के आम तौर पर ताजिए दारी राइज है वह बेशक हराम व नाजाइज़ व बिदअते सैयआ है। (फतावा फैजुर्रसूल जिल्द 2, सफः 563)

यहां यह बात भी काबिले ज़िक्र है कि 1388 हिज० में अब से तक़रीबन 47 साल पहले ताजिए दारी के हराम व नाजाइज़ होने से मुतअल्लिक एक फतवा मरकज़ अहले सुन्नत बरैली शरीफ से शाए हुआ था जिस पर उस ज़माने के हिन्दुस्तान व पाकिस्तान के मुख्तलिफ शहरों के 75 बड़े-बड़े सुन्नी उलमाए किराम के दस्तखत थे सभी ने ताजिए दारी के हराम और नाजाइज़ होने की तस्दीक की थी और वह फतवा उस ज़माने में पोस्टर की शक्ल में शाए किया गया था उसकी तफ्सील उलमाए किराम के नाम के साथ हज़रत मौलाना मुफ्ती जलालुद्दीन साहब अलैहिर्रहमा की तस्नीफ “खुतबाते मुहर्रम” सफः 466 पर देखी जा सकती है गोया कि ताजिए दारी हराम होने पर इज्माए उम्मत है। इस सबके होते हुए यह कहना कि ताजिए दारी से रोकना वहाबियों का काम है जिहालत, नादानी और नावाकफी है। बल्कि कुछ बातों से तो यह शुबह होता है कि ताजिए दारी कराने में वहाबियों का हाथ रहता है जैसा कि बाज़ दर्गाहों मजारों पर देखा गया है जहाँ खिलाफे शरअ हरकात व वाहियात, खुराफात होती है वहाँ के सज्जादा नशीन मुहतमिम व मुतवल्ली देवबन्दी और वहाबी लोग हैं। बात दरअसल यह है कि वहाबी चाहते हैं कि सुन्नियों से खूब खिलाफे शरअ बातें हरकतें और खुराफातें कराई जाएं ताकि मज़हबे अहले सुन्नत बदनाम हो और वहाबी मज़हब को फरोग मिले और मुसलमान सुन्नियों की बेजा बातों को देख कर उन से दूर हों और हमारे करीब हों। यह भी नामुम्किन नहीं है कि ताजिए दारी और कव्वाली वगैरह को जाइज़ कहने वाले कुछ सुन्नी मौलवियों और पीरों ने वहाबियों से साज़ गांठ कर ली हो।

 

taziyadari par olamaye ahle sunnat ka maoqif

ताजिए दारी पर उलमाए अहले सुन्नत का मोकिफ

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