तह़ारत के मसाइल
सवाल: तह़ारत का क्या मतलब है और इसकी कितनी क़िस्में हैं?
जवाब: तह़ारत का मतलब यह है कि नमाज़ी का बदन, उसके कपड़े और वह जगह जिस पर नमाज़ पढ़नी है, नजासत से पाक-साफ़ हो।
तह़ारत की दो क़िस्में हैं:
{१} तह़ारत-ए सुग़रा
{२} तह़ारत-ए कुबरा
तह़ारत-ए सुग़रा वुज़ू है और तह़ारत-ए कुबरा ग़ुस्ल है।
जिन चीज़ों से सिर्फ़ वुज़ू लाज़िम आता है, उनको ह़दस-ए अ़सग़र कहते हैं और जिनसे ग़ुस्ल फ़र्ज़ हो, उनको ह़दस-ए अकबर कहा जाता है।
(हमारा इस्लाम, नमाज़ की शर्त अव्वल: तह़ारत, हिस्सा २, सफ़ा ७२)
सवाल: नजासत की कितनी क़िस्में हैं और उनका ह़ुक्म व उनसे पाक होने का तरीक़ा क्या है?
जवाब: नजासत की दो क़िस्में हैं:
{१} ह़ुक्मिय्या
{२} ह़क़ीक़िय्या
नजासत-ए ह़ुक़्मिय्या:
वह है जो नज़र नहीं आती, यानी सिर्फ़ शरीअ़त के ह़ुक्म से उसे नापाकी कहते हैं, जैसे बे-वुज़ू होना या ग़ुस्ल की ह़ाजत होना।
पाक होने का तरीक़ा: “जहाँ वुज़ू करना लाज़िमी हो, वहाँ वुज़ू करना और जहाँ ग़ुस्ल की ह़ाजत हो, वहाँ ग़ुस्ल करना।
नजासत-ए ह़क़ीक़िय्या:
वह नापाक चीज़ है जो कपड़े या बदन वग़ैरा पर लग जाए तो ज़ाहिर तौर पर मालूम हो जाती है, जैसे पाख़ाना, पेशाब वग़ैरह।
फिर नजासत-ए ह़क़ीक़िय्या की भी दो क़िस्में हैं:
{१} ग़लीज़ा
{२} ख़फ़ीफ़ा
नजासत-ए ग़लीज़ा: वह है जिसका ह़ुक्म सख़्त है।
नजासत-ए ख़फ़ीफ़ा: वह है जिसका ह़ुक्म हल्का है।
पाक होने का तरीक़ा:
नजासत-ए ग़लीज़ा का ह़ुक्म:
अगर कपड़े या बदन में एक दिरहम से ज़्यादा लग जाए तो उसका पाक करना फ़र्ज़ है, बे-पाक किए नमाज़ होगी ही नहीं।
अगर दिरहम के बराबर है तो पाक करना वाजिब है कि बे-पाक किए नमाज़ पढ़ी तो मक़रूह तहरीमी हुई, यानी ऐसी नमाज़ का इआ़दा (दोबारा पढ़ना) वाजिब है।
अगर दिरहम से कम है तो पाक करना सुन्नत है, बे-पाक किए नमाज़ पढ़ी तो हो गई मगर ख़िलाफ़-ए सुन्नत हुई, इसका लोटाना बेहतर है।
नजासत-ए ख़फ़ीफ़ा का ह़ुक्म:
अगर कपड़े के हिस्से या बदन के जिस अ़’अज़ा में लगी है, उसकी चौथाई से कम है तो माफ़ हो जाएगी।
अगर पूरी चौथाई में हो तो उसका धोना वाजिब है।
अगर ज़्यादा हो तो उसका पाक करना फ़र्ज़ है, बे-धोए नमाज़ होगी ही नहीं।
(हमारा इस्लाम, नमाज़ की शर्त अव्वल: तह़ारत, हिस्सा २, सफ़ा ७३-७४ मिल्तक़त़न)
(गुलदस्त-ए अ़क़ाइद व अ़माल सफ़ा ऑनलाइन – ३४)