निकाह कितना आसान है!
घर के ज़िम्मेदार इस बात को समझेंः आपका बेटा अभी पढ़ाई कर रहा है, लेकिन उसकी उम्र निकाह वाली हो गई है, आपको रिश्ता तलाशना चाहिए। आप पूरी ज़िन्दगी अपने बेटे को खिलाते रहे, अब उसकी शादी भी करा दें, रूखसती भी करा लें, कुछ साल अपनी बहू के ख़र्च की ज़िम्मेदारी यही सोचकर उठा लें कि अल्लाह ने इस उम्र में एक और बेटी से नवाज़ा है।
एक मजलिस में दो गवाहों की मौजूदगी में मर्द व औरत की तरफ से इस तरह ईजाब व कुबूल पा लिया जाए कि दोनों गवाह सुन लें, निकाह हो गया। शरीअत ने निकाह को इतना आसान रखा है, माहौल ने, रस्मो रिवाज, फख्र और दिखावे, लोग क्या कहेंगे की फिक्र ने इसे मुश्किल बना दिया। जब यह निकाह मुश्किल हो गया तो मआज़अल्लाह ज़िनाकारी आम हो गई। अब तो अल्लाह की पनाह मुर्तद हो जाने का सैलाब बढ़ता जा रहा है। खास कर हमारी इस्लामी बहनें काफिरों के साथ भाग कर शादी कर रही हैं और उनका मज़हब अपना रही है। यह सब इसका नतीजा है कि माँ-बाप ने अपनी औलाद को दुनियावी तालीम में लगा दिया और दीनी और इस्लामी तर्वियत से आँखें बन्द कर लीं। आखिर ज़िम्मेदार कौन? आप यह न सोंचे कि हमारा घर बहुत महफूज़ है। आप भी फिक्र करें, खुदा के वास्ते अपनी औलाद का जल्द निकाह करें।
इसलिए रस्मो रिवाज और लोगों की फिक्र को छोड़कर अपनी औलाद की आखिरत की फिक्र करें।
निकाह में जल्दी करेंः अपनी औलाद के निकाह में जल्दी करें। हालात बहुत ज़्यादा खराब हैं। बुराई और बे-हयाई के फितने आम हो गए हैं। आपके ज़माने में इतनी बुराई नहीं थी, अब नेट और मोबाइल का ज़माना है सोशल मीडिया की वजह से बुराईयाँ बहुत आम हो गई है। हर तरफ फितना ही फितना है, रस्मो रिवाज के चक्कर में आकर अगर आप निकाह में देर करते हैं और आपकी औलाद गुनाहों में पड़ी है तो यकीन जानें कि कयामत के दिन आपसे जवाब नहीं बन पायेगा और यही रस्मो रिवाज आपको ले डूबेगा।
आपके नसीब का रिज़्क आपको मिलकर ही रहेगा और साथ ही इस अज़ीम नेकी की बरकत भी ज़ाहिर होगी। खुदा करे माँ-बाप, बड़े भाई या घर के ज़िम्मेदार इस बात को समझें। जहेज़ और शादियों में फुजूल खर्चियों ने भी निकाह को बहुत मुश्किल बना दिया है, बारात का आलीशान इन्तेज़ाम और उनकी मेहमान नवाज़ी की फरमाइश ने भी निकाह को बहुत मुश्किल बना दिया है, अब ज़रूरी है कि हम इन जैसी गैर शरई रस्मो रिवाज को ख़त्म कर दें और शरीअत के मुताबिक निकाह की सुन्नत को अदा करें।
याद रखें! यह ऐतेराज़ करने वाले आपके बोझ को हल्का नहीं करेंगे, बल्कि सब कुछ आप ही को करना है, इसलिए शरीअत पर अमल करते हुए अपनी औलाद का निकाह करें, दुनिया और आखिरत की भलाईयाँ नसीब होंगी।
मुफ्ती वसीम अकरम मिसबाही
उस्तादः जामिअतुल मदीना, फैज़ाने इमाम इमाम अह़मद रज़ा, हैदराबाद (तेलंगाना)