Thursday , 21 November 2024

मुह़र्रम में नियाज़ व फातिहा़ करना कैसा है

सवाल
अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाहि व बरकातुहू
मुह़र्रम में नियाज़ व फातिहा़ करना कैसा है?

जवाब
व अलैकुम अस्सलाम व रहमतुल्लाहि व बरकातुहू

हज़रत इमाम हुसैन रदिअल्लाहु तआला अन्हु और जो लोग उनके साथ शहीद किए गये उनको सवाब पहुंचाने के लिए सदका व खैरात किया जाए, गरीबों मिस्कीनों को या दोस्तों, पड़ोसियों, रिश्तेदारों वगैरह को शर्बत या खिचडे या मलीदे वगैरह कोई भी जाइज़ खाने पीने की चीज़ खिलाई या पिलाई जाए और उसके साथ आयाते कुरआनिया की तिलावत कर दी जाए तो और भी बेहतर है इसको उर्फ में नियाज व फातिहा कहते हैं यह सब बिला शक जाइज़ और सवाब का काम है और बुजुर्गों से इज़्हारे अकीदत व मुहब्बत का अच्छा तरीका है लेकिन इस बारे में चन्द बातों का ध्यान रखना जरूरी है।

1. नियाज़ फातिहा किसी भी हलाल और जाइज खाने पीने की चीज़ पर हो सकती है उसके लिए शर्बत, खिचड़े़ और मलीदे को ज़रूरी ख़्याल करना जिहालत है अल्बत्ता उन चीज़ों पर फातिहा दिलाने में भी कोई हरज नहीं है अगर कोई इन मज़्कुरा चीज़ों पर फातिहा दिलाता है तो वह कुछ बुरा नहीं करता है जो उन्हें ज़रूरी ख्याल करता है उनके अलावा किसी और खाने पीने की चीज़ पर मुहर्रम में फातिहा सही नहीं मानता वह ज़रूर जाहिल है।

2. नियाज व फातिहा में शेखी खोरी नहीं होना चाहिए और न खाने पीने की चीजों में एक दूसरे से मुकाबला। बल्कि जो कुछ भी हो और जितना भी हो सब सिर्फ अल्लाह वालों के जरिए अल्लाह तआला की नज़्दीकी और उसका कु़र्ब और रजा हासिल करने के लिए हो। और अल्लाह के नेक बन्दों से मुहब्बत इसलिए की जाती है कि उन से मुहब्बत करने और उनके नाम पर खाना खिलाने और उनकी रूहों को अच्छे कामों का सवाब पहुंचान से अल्लाह राजी होता है और अल्लाह को राजी करना है। हर मुसलमान की जिन्दगी का असली मक्सद है।

3. नियाज़ व फातिहा बुजुर्गों की हो या बड़े बूढ़ों की उसके तौर तरीके जो मुसलमानों में राइज हैं जाइज़ और अच्छे काम है फर्ज और वाजिब नहीं अगर कोई करता है तो अच्छा करता है और नहीं करता है तब भी गुनहगार नहीं हाँ कभी भी और बिल्कुल न करना महरूमी है। नियाज़ व फातिहा को न करने वाला गुनहगार नहीं है हाँ उस से रोकने और मना करने वाला ज़रूर गुमराह व बद मज़हब है और बुजुर्गों के नाम से जलने वाला है।
4. 4. नियाज़ फातिहा़ के लिए बाल बच्चों को तंग करने की या किसी को परेशान करने की या खुद परेशान होने की या उन कामों के लिए कर्जे़ लेने की कोई ज़रूरत नहीं है। जैसा और जितना मौक़ा हो उतना करे और कुछ भी न हो तो खाली कुरआन या कलिमा तैय्यबा या दुरूद शरीफ वगैरह जि़क्रे खै़र करके या नफ़्ल नमाज या रोजे रख कर सवाब पहुंचा दिया जाए तो यह काफी है और मुकम्मल नियाज़ और पूरी फातिहा है जिसमें कोई कमी यानी शरअन खा़मी नहीं है। खुदाए तआला ने इस्लाम के ज़रिए बन्दों पर उनकी ताक़त से ज़्यादा बोझ नहीं डाला। ज़कात हो या सदक़-ए-फित्र और कु़रबानी सिर्फ उन्हीं पर फर्ज़ व वाजिब हैं जो साहिबे निसाब यानी शरअ़न मालदार हों। हज उसी पर फर्ज़ किया गया जिसके बस की बात हो. अकी़का़ व वलीमा उन्हीं के लिए सुन्नत हैं जिनका मौका हो जबकि यह काम फर्ज व वाजिब या सुन्नत है और नियाज व फातिहा उर्स वगैरह तो सिर्फ बिदआते हसना यानी सिर्फ अच्छे और मुस्तह़ब हैं फर्ज़ व वाजिब नहीं है यानी शरअन लाज़िम व ज़रूरी नहीं हैं। फिर नियाज़ व फातिहा के लिए कर्जे़ लेने, परेशान होने और बाल बच्चों को तंग करने की क्या ज़रूरत है बल्कि हलाल कमाई से अपने बच्चों की परवरिश करना ब-जा़ते खुद एक किस्म की बेहतरीन नियाज और उम्दा फाइदा है।

खुलासा यह कि उर्स, नियाज व फातिहा वगैरह बुजुर्गों की यादगारें मनाने की जो लोग मुखालिफत करते हैं वह गलती पर हैं गुमराह हैं और जो लोग सिर्फ इन कामों को ही इस्लाम समझे हुए हैं और शरअ़न उन्हें लाज़िम व जरूरी ख्याल करते है वह भी बड़ी भूल में हैं।

5. नियाज़ फातिहा की हो या कोई और खाने पीने की चीज उसको लुटाना, भीड़ में फेकना कि उसकी बेअदबी हो पैरों के नीचे आए या नाली वगैरह व गन्दी जगहों पर गिरे एक गलत तरीका है जिस से बचना जरूरी है जैसा कि मुहर्रम के दिनों में कुछ लोग पूड़ी, गुलगुले या बिस्कुट वगैरह छतों से फेंकते और लुटाते हैं यह नामुनासिब हरकतें हैं।

 

muharram me niyaz o fatiha kaena kaisa hai

मुह़र्रम में नियाज़ व फातिहा़ करना कैसा है

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