Thursday , 21 November 2024

कर्बला में हज़रत क़ासिम की मेंहदी का वाक़्या

सवाल
अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाहि व बरकातुहू
क्या कर्बला में हज़रत क़ासिम रदिअल्लाहु अन्हु की मेंहदी का वाक़्या सही है?

जवाब
व अलैकुम अस्सलाम व रहमतुल्लाहि व बरकातुहू

हज़रत इमाम का़सिम इमाम हु़सैन रदिअल्लाहु तआला अन्हु के भतीजे और हज़रत इमाम हसन रदिअल्लाहु तआला के फरज़न्दे अरजुमन्द है। करबला में अपने चचा बुजुर्गवार के साथ बहुत से जा़लिमों को मार कर शहीद किए गये। बात सिर्फ इतनी है कि हज़रत इमाम हुसैन की एक साहबजा़दी से उनकी निस्बत तय हो चुकी थी निकाह से पहले ही करबला का सानेहा दर (वाक़्या) पेश हो गया। इतनी सी बात को लोगों ने अफ्साना बना दिया और कहा कि करबला में ही उनकी शादी हुई और वह दूल्हा बने उनके मेंहदी लगी और मेंहदी कहीं 7 तारीख और कहीं 8 तारीख और कहीं 13 के मेले तमाशे और ढोल ढमाके बन गई। बांस की खपचियों और पन्नी व काग़ज़ से छोटे-छोटे खिलौने बनाए जाते हैं और उनका नाम जाहिलों ने मेंहदी रख दिया। और मुसलमानों में से वह लोग जिनका मिज़ाज तमाशाई था उन्होंने अपने जौ़क की चाशनी खेल खेलने और तमाशे मेले करने के लिए हज़रत इमाम का़सिम रदि अल्लाहु तआला अन्हु की मुबारक शख़्सियत को आड़ बना लिया। भाईयो यह तमाशे कब तक करोगे कुछ मरने के बाद की और आख़िरत की भी फिक्र है। तक़रीरों के जरिए लम्बे-लम्बे नज़राने ऐंठने वाले अफ़साना निगार खतीबों को भी रंग भरने का खूब मौका मिला और नई दुल्हन के सामने दूल्हा की शहादत रोने और रुलाने और दहाड़ें मारने का बहाना बन गई और शाइरों की मर्सिया निगारी ने इस छोटी सी बात को कहाँ से कहाँ तक पहुंचा दिया।

खुलासा यह कि मेंहदी की रस्म और उस से मुतअल्लिक वाक़्या सब मन गढ़़त और फु़जू़लियात से है और उसके नाम पर जो कुछ खुराफातें और जाहिलाना हरकतें होती हैं यह सब नाजाइज़ व गुनाह व हराम हैं।

आला हज़रत इमाम अहले सुन्नत अहमद रज़ा खाँ बरैलवी रहमतुल्लाहि अलैह फरमाते हैं ताजिया, मेंहदी, शबे आशूरा को रौशनी करना बिदअत व नाजाइज़ है। हजरत सैयदना इमाम का़सिम रदि अल्लाहु अन्हु के साथ करबला में हज़रत सैय्यदना इमाम हुसैन की साहिबजा़दी की शादी का वाकया साबित नहीं है किसी ने गढ़ा है। (मफ़्हूम इ़बारत फतावा रज़्विया जिल्द 24, सफः 500 व 501)

 

karbala me hazrat qasim ki mehdi ka waqya

कर्बला में हज़रत क़ासिम की मेंहदी का वाक़्या

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