सवाल
अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाहि व बरकातुहू
ईद ए ग़दीर के बारे में कुछ तफसील से इरशाद फरमाएं !
जवाब
व अलैकुम अस्सलाम व रहमतुल्लाहि व बरकातुहू
अमीरुल मोमिनीन कामिलुल हया वल ईमान, जामेअुल क़ुरआन, दामादे पैग़म्बर हज़रत मुज्हिज़ जेशुल उसरत फी रज़ी रहमान उस्मान बिन अ़फ्फान रज़ी अल्लाहु अन्हु
हज़रत ज़ुबैर बिन बकार का बयान है कि
अमीर-उल-मोमिनीन उस्मान ग़नी रज़ी अल्लाहु तआला अन्हु की बैअत सोमवार, ज़िल-हिज्जा की आखिरी रात 23 हिजरी को की गई। 18 ज़िल-हिज्जा 35 हिजरी, शुक्रवार की शाम के बाद, अस्र के समय उन्हें शहीद कर दिया गया और उसी रात को मग़रिब के बाद, ईशा से पहले दफन किया गया। (1. अल-इसाबा फी तमीज़ अस-सहाबा, बाब उस्मान रज़ी अल्लाहु तआला अन्हु,
दार सादिर, बैरूत, 2/463)
शाह अब्दुल अजीज़ साहिब ने “तौहफा एथना अशरिया” में अमीर-उल-मोमिनीन ज़ुल-नूरैन रज़ी अल्लाहु तआला अन्हु पर राफ़िज़ियों के दसवें तआन (आरोप) का उल्लेख करते हुए कहा कि:
क़त्ल के बाद उन्हें तीन दिन तक ऐसे ही फेंक दिया
गया और दफ़न नहीं होने दिया गया।
कुत्तों का शब्द इस तअ’न (आरोप) में भी नहीं है। फिर जवाब में बहुत सी रिवायात (कथाओं) का ज़िक्र करके फ़रमाया:
इन तमाम मशहूर रिवायात से साबित हो रहा है कि हज़रत उस्मान (रज़ी अल्लाहु अन्हु) की लाश का तीन दिन तक पड़े रहने का वाक़या महज़ इफ़्तिरा (आरोप) और झूठ है और तमाम कुतुब-ए-तारीख़ में इसकी तकज़ीब (खण्डन) मौजूद है क्योंकि तमाम मोरख़ीन का इत्तेफ़ाक़ (सहमति) है कि हज़रत उस्मान (रज़ी अल्लाहु अन्हु) की शहादत 18 ज़िल-हिज्जा, जुमा मुबारक, अस्र की नमाज़ के बाद हुई और बिला शुब्हा (निस्संदेह) शनिवार की रात बक़ीअ शरीफ़ में तदफ़ीन (दफन) हुई, इन्तेहा। (3. तौहफा एथना अशरिया, मुताअ’न उस्मान रज़ी अल्लाहु अन्हु, तअ’न दहम
सुहैल अकैडमी, लाहौर, 1/329)
यौम-ए-ग़दीर अहल-ए-तशीअ की ईद-ए-अकबर है। वे इस दिन को खास इसलिए मानते हैं क्योंकि उनके मुताबिक, इस दिन हज़रत अली करम अल्लाह वज्हुल करीम को ख़िलाफ़त बिला फसल मिली थी बल्कि इमामत के भी क़ायल हैं। नيز यह भी मशहूर है कि इस दिन हज़रत उस्मान-ए-गनी की शहादत हुई थी।
इसलिए वे इस दिन जश्न मनाते हैं। ये सारी वजहें हो सकती हैं, लेकिन असल वजह हज़रत अली करम अल्लाह वज्हुल करीम की ख़िलाफ़त बिला फसल और इमामत है। इस ईद-ए-ग़दीर के बानी, इराकी शिया हाकिम, मुइज़ उद्दीन अहमद बिन अबूयह वैल्मी हैं। सबसे पहले उन्होंने राफ़ज़ियों के साथ 18 ज़िलहिज्जा 352 हिजरी को बगदाद में ईद-ए-ग़दीर मनाई। अल्लामा इब्न कसीर ने “अल-बिदाया व अल-निहाया” में लिखा है (261/15)।
उद्देश्य: ईद-ए-ग़दीर शिया समुदाय का त्योहार है, जिसे शिया मुसलमान पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) द्वारा हज़रत अली (रज़ी अल्लाहु अन्हु) को ख़िलाफ़त और इमामत देने की घटना के आधार पर मनाते हैं। हालांकि, यह पूरी तरह से झूठ और धोखा है।
ग़दीर-ए-ख़ुम की घटना से हज़रत अली (रज़ी अल्लाहु अन्हु) की ख़िलाफ़त और इमामत का कोई प्रमाण नहीं मिलता। ग़दीर-ए-ख़ुम की हदीस से हज़रत अली (रज़ी अल्लाहु अन्हु) की श्रेष्ठता अवश्य उजागर होती है, लेकिन इससे ख़िलाफ़त और इमामत का अर्थ निकालना अज्ञानता है। इससे पहले भी कई मौकों पर पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने हज़रत अली (रज़ी अल्लाहु अन्हु) को इस तरह सम्मानित किया, फिर इस दिन को ईद का दिन क्यों नहीं माना गया?
शिया समुदाय ग़दीर-ए-ख़ुम की घटना के जिन शब्दों का अपने उद्देश्य के लिए उपयोग करता है, वे हैं “من کنت مولاہ فعلی مولاہ“मं कुंतु मौलाहु फअली मौलाहु”। हालांकि, इस वाक्य से किसी भी प्रकार से ख़िलाफ़त और इमामत का अर्थ प्रकट नहीं होता। “मौला” का अर्थ ख़लीफ़ा या इमाम कहीं भी नहीं आता, बल्कि इसके कई अर्थों में से एक महत्वपूर्ण अर्थ यहाँ नासिर (सहायक) और मददगार है। ख़लीफ़ा या इमाम का अर्थ केवल भ्रष्ट है। हम इस शब्द “मौलाहु” पर हदीस के व्याख्याकारों के बयान दर्ज करते हैं ताकि अर्थ स्पष्ट हो सके।
मुल्ला अली क़ारी इस हदीस की व्याख्या में लिखते हैं, “जिसका मैं मददगार हूँ, उसका अली मददगार है।” कहा गया है कि इसका अर्थ यह है कि “जिससे मैं दोस्ती रखता हूँ, उससे अली दोस्ती रखते हैं।” दोस्त बनाम दुश्मन यानी “जिससे मैं प्यार करता हूँ, उससे अली प्यार करते हैं।” और इसका यह अर्थ भी किया गया है कि “जिस व्यक्ति ने मुझसे दोस्ती रखी, तो अली उससे दोस्ती रखते हैं।” हमारे व्याख्याकारों और विद्वानों ने ऐसा ही उल्लेख किया है।
हदीस ग़दीर ख़ुम में ‘मौलाह’ शब्द का अर्थ मददगार है? सिवाय अहले तशीअ के किसी ने भी ‘मौलाह’ का अर्थ ख़िलाफ़त, इमामत, आका या विलायत मशहूर नहीं लिया है। इसलिए इमामत या विलायत या आका मशहूर मानना गलत है, बल्कि ख़िलाफ़त मानने में अहले तशीअ के बाअतिल अकीदे की तर्जुमानी है जो यकीनन गुमराही है क्योंकि हज़रत अली को इस हदीस की रोशनी में अहले तशीअ खलीफा बिला फ़ सल तस्लीम करते हैं और ख़ुलफ़ा ए सलासा हज़रत अबू बकर, हज़रत उमर, हज़रत उस्मान रज़ियल्लाहु तआला अन्हुम की ख़िलाफ़त को बाअतिल मानते हैं। हालाँकि यह सरासर गुमराही है बल्कि कुफ्र है क्योंकि ख़ुलफ़ा ए अरबा की ख़िलाफ़त पर इज्मा ए उम्मत है और इज्मा ए उम्मत का इंकार कुफ्र है।
ग़दीर के दिन को मनाने की प्रेरणा देना शिया समुदाय के ग़लत और गुमराह करने वाले विचारों को बढ़ावा देना है, जो निश्चित रूप से गुनाह है और गुमराही व क़ुफ़्र (अविश्वास) में मदद करना है। इसी तरह उन जलसों में शामिल होना जहाँ शिया समुदाय अपने ग़लत और अवैध क़ुफ़्री (अविश्वासी) विचारों का प्रचार करता है, हराम (निषिद्ध) है और उनके क़ुफ़्री विचारों से सहमत होने और उनके प्रचार में मदद करने के कारण यह क़ुफ़्र है।
ग़दीर के दिन को मनाने की प्रेरणा देना शिया समुदाय के ग़लत और गुमराह करने वाले विचारों को बढ़ावा देना है, जो निश्चित रूप से गुनाह है और गुमराही व क़ुफ़्र (अविश्वास) में मदद करना है। इसी तरह उन जलसों में शामिल होना जहाँ शिया समुदाय अपने ग़लत और अवैध क़ुफ़्री (अविश्वासी) विचारों का प्रचार करता है, हराम (निषिद्ध) है और उनके क़ुफ़्री विचारों से सहमत होने और उनके प्रचार में मदद करने के कारण यह क़ुफ़्र है।
सारांश में: ग़दीर के दिन को ईद के रूप में मानना, चाहे शिया समुदाय के ग़लत विचारों से सहमत हुए बिना भी हो, तब भी यह गुनाह में मदद करने का आरोप रहेगा। और क्योंकि ईद-ए-ग़दीर की बुनियादी वजह हज़रत अली की खिलाफत बिला फसल (यानी तुरंत) और खलीफ़ा तीन (पहले तीन खलीफाओं) की खिलाफत का इनकार है, जो निःसंदेह क़ुफ़्र है, तो इस तरह क़ुफ़्र में मदद करना है। इसलिए गुनाह में मदद करना गुनाह-ए-कबीरा (बड़ा गुनाह) और क़ुफ़्र में मदद करना क़ुफ़्र है।
सारांश: ईद-ए-ग़दीर शिया समुदाय का धार्मिक त्यौहार है। सुन्नी समुदाय का इस दिन को ईद के रूप में मनाना शिया समुदाय के ग़लत विचारों और विश्वासों का समर्थन करना और उनके ग़लत व कुफ्री (अविश्वासी) विश्वासों को मज़बूत करने के समान है। इसलिए ईद-ए-ग़दीर मनाने की प्रेरणा देना लोगों को क़ुफ़्र और कम से कम गुमराही की ओर बुलाने के समान है और साथ ही राफ़िज़ (शिया) के ग़लत विचारों को मज़बूती देना है।
ज़ाहिदे मस्जिद अहमदी पर दरूद
दौलते जेशे उसरत पे लाखों सलाम
दुरे मन्थूर क़ुरआं की सिल्क बही
ज़ौज दो नूर इफ़्फ़त पे लाखों सलाम
यानी उस्मान साहिबे कमीसे हुदा
हुल्ला पोशे शहादत पे लाखों सलाम