Thursday , 21 November 2024

क्या औरत इददात के दरमियान बाहर निकल सकती है?

सवाल

अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाहि व बरकातुहू

मेरा सवाल यह है के एक औरत जिसके शौहर ने उसे तलाक़ देदी है अब वह औरत इद्दत के दरमियान बाहर आती जाती रहती है बगै़र किसी वजह के ग़ैर मेहरम से भी बात करती है क्या उस औरत की इद्दत हो जाएगी और हलाला के बाद उसी शख़्स से दोबारा निकाह भी करना है

जवाब इनायत फ़रमाऐं

सवाल करने वाला

मोहम्मद तनवीर रज़ा

जवाब

व अलैकुम अस्सलाम व रहमतुल्लाहि व बरकातुहू

सूरत से मुसूला मुदा उसका खातून का दौरा ने इद्दत बगै़र किसी उज़रे शरई के घर से बाहर निकलना जायज़ नहीं है

हां अगर उज़रे शरई है (मसलन सख़्त बीमारी की वजह से डॉक्टर के पास जाना हो या फिर घर के गिर जाने का ख़तरा हो या किराया ना होने की सूरत में घर खाली करना हो वगैरह) निकलने की इजाज़त है लेकिन रात बेहर हाल घर में आकर गुजारे ‘ जब के इद्दते तलाक़ में बैठी हुई औरत को कस्बे मआश यानी रोजी कमाने के लिए घर से निकलना की इजाज़त नहीं है; क्यों कि मुत्तलिक़ा का खर्चा इद्दत के दौरान शोहर के जम्मे लाज़िम है ताहम‌ अगर मुत्तलिक़ा के लिए भी कोई बंदोबस्त नहीं है तो वह भी कस्बे मआश के लिए ज़रूरत के मुताबिक़ निकल सकती है     

  फ़तावा शामी में है

तलाक़ या मौत की इद्दत करने वाली से ज़रूरत घर से निकलना जायज़ नहीं है, जब घर गिरने या माल के ज़ाऐ होने का खतरा हो या किराया ना हो तो ऐसी सूरत में घर से निकल सकती है   

तलाक़ का बयान जिल्द न:3 सफ़ा न:536

और रही औरत का ना महरम से बात करनाए अगर शरई ज़रूरत के तहत हो तो बक़दरे ज़रूरत उस की इजाज़त है ‘ गुनाह इद्दत में हो ‘ या ना और बिला ज़रूरते शरई औरत के लिए ना महरम मर्द से बातचीत करना गुनाह की बात है ‘ शरअन उस की इजाज़त नहीं है। अगर कभी ना महरम से बातचीत करने की ज़रूरत पैश आजाऐ सख़्त लेहजा और आवाज़ में बात करनी चाहिए’ जैसा के क़ुरआने पाक में सूरज (एहज़आब) में अज़वाजे मुतह्हरात रज़ी अल्लाहू ताला अनहुन्ना को (उम्महातोल मोमिनीन होने के बावजूद ) सदारत की गई के अगर

कोई उम्मती से बातचीत की नोबत आ जाए तो नरम गुफ्तगू ना करें ‘ ऐसा ना हो के उस शख़्स के दिल में कोई तमाना पैदा हो जाए जो दिल का मर्ज हो ‘ बल्के साफ़ और दो टोक बात कहें।

चुनांचे फ़क़हआ ने लिखा है के अगर किसी ज़रूरत और मजबूरी से ना महरम से बात करनी पड़े तो बहुत मुख्तसर बात करें’ हां ‘ ना का जवाब दे कर बात ख़त्म कर डालें ‘ जहां तक मुमकिन हो आवाज़ पस्त रख्खें और लहजा में कशिश पैदा ना होने दें

जी उसकी इद्दत बेहर हाल पूरी हो जाएगी

वल्लाहु आलम

 

kya aurat iddat ke darmiyan bahar nikal sakti hai

क्या औरत इददात के दरमियान बाहर निकल सकती है?

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