सवाल
अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाहि व बरकातुहू
क्या फरमाते हैं उलमा-ए-इकराम व मुफ़्तियाने-इज़ाम इस मसअले में कि (1) जिस चौक पर ताज़िया रखा हो उस के सामने फातिहा पढ़ना कैसा (2) और जिस चौक पर ताज़िया रखा जाता हो लेकिन फ़िलहाल ताज़िया ना हो (3) और ऐसे चौक पर फातिहा पढ़ना कैसा जिस पर पहले ताज़िया रखा जाता था अब नहीं रखा जाता है और कभी रखा भी नहीं जाएगा सिर्फ़ अपनी ज़रूरत के तहत छोड़ रखा है? जवाब इनायत फ़रमाएं महरबानी होगी।
मुस्तफ़ती: हाफिज़ मुह़म्मद अज़हर हनीफ़ी
साकिन: क़स्बा इचौली, बाराबंकी
जवाब
व अलैकुम अस्सलाम व रहमतुल्लाहि व बरकातुहू
जाइज़ और हलाल चीज़ पर फातिहा कहीं भी दे सकते हैं, ख़ास कर मज़कूरा मकामात पर फातिहा बिदअत और ममनू है, ख़ासतौर से शुरू की दोनों सूरतों में कि इस से ताज़िया की अज़मत ज़ाहिर होगी, और तीसरी सूरत भी क़बाहत से ख़ाली नहीं कि इस सूरत में तोहमत का अंदेशा ज़रूर है, सुन्नियों को इस से एहतिराज़ करना चाहिए और जो कुछ ह़लाल और जाइज चीज मुयस्सर हो अपने घरों पर हज़रात शोहदा -ए – करबला ( رضوان اللہ علیہم اجمعین) व दीगर बुज़ुर्गाने दीन की अरवाह पुर फुतूह को ईसाल करना चाहिए ,ये तरीक़ा हर ऐतिबार से मज़्कूरा ख़लल से पाक और महबूब व महमूद है, आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा क़ुद्दिसा सिर्रूहु इसी क़िस्म के एक सवाल के जवाब में तहरीर फ़रमाते हैं: “फातिहा जाइज़ है, रोटी शीरीनी शरबत जिस चीज़ पर हो मगर ताज़िया पर रख कर या उस के सामने होना जहालत है और उस पर चढ़ाने को सबबे तबर्रुक समझना हिमाक़त है, हां ताज़िया से जुदा जो ख़ालिस सच्ची नियत से हज़रात शोहदा -ए – करबला ( رضوان اللہ علیہم اجمعین) की नियाज़ हो वो ज़रूर तबर्रुक है वहा़बी ख़बीस कि उसे ख़बीस कहता है ख़ुद ख़बीस है“
(फ़ताव़ा रज़विया मुतरजम, जिल्द: 24, पेज: 498)
दूसरी जगह इरशाद फ़रमाते हैं अफ़्आले मज़कूरा जिस तरह आवाम-ए-ज़माना में राइज हैं बिदअते सिय्यआ और ममनू व नाजाइज हैं उन्हें दाखिले सवाब जानना और मुवाफ़िक़े शरीअत मज़हबे अहल-ए-सुन्नत मानना इस से सख़्त तर व ख़ताए अक़ीद़ा जहले अशद है,
(फ़ताव़ा रज़विया मुतरजम किताबुल हजर वल इबाहत जिल्द: 24, पेज:527)
واللہ تعالیٰ اعلم بالصواب
मुफ्ती मुहम्मद इम्तियाज़ अहमद अमजदी